Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 35
________________ संदृष्टि नं.6 लब्ध्यपर्याप्त तिर्यंच आस्रव 42 लब्ध्याप्त तिर्यंचों के 42 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, मनअविरति को छोड़कर।1 अविरति, योग 3 (औदारिक, औदारिकमिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व मात्र ही होता है। आस्रव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आम्रव 1. मिथ्यात्व 42 [5 मिथ्यात्व, 11 अविरति, योग 3 (औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद] मणुवेसु ण वेगुव्वदु पणवण्णं संति तत्थ भोगेसु । हारदुसंढविवन्जिद दुवण्णऽपुण्णे अपुण्णे वा ॥31॥ मनुजेषु न वैक्रियिकदिकं पंचपंचाशत् सन्ति तत्र भोगेषु । आहारदिकषंदविवर्जितं दिपंचाशत् 'अपूर्णे अपूर्णे इव ॥ अर्थ - कर्म भूमिज मनुष्यों के वैक्रियिक द्विक को छोड़कर, पचपन आम्रव होते हैं। भोग भूमिज मनुष्यों के उपर्युक्त पचपन में से आहारद्विक, नपुंसकवेद को छोड़कर बावन आस्रव (प्रत्यय) होते हैं तथा लब्ध्यपर्याप्त मनुष्यों में लब्ध्यपर्याप्त तिर्यंचों के समान 42 आस्रव जानना चाहिए। 1. लब्ध्यपर्याप्तमनुष्येषु लब्ध्यपर्याप्ततिर्यग्वज्ज्ञातव्यमित्यर्थः । [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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