Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ अर्थ - भवनत्रिक तथा कल्पवासी स्त्रियों के असंयत गुणस्थान में कार्मण काययोग तथा वैक्रियिकमिश्र काययोग नहीं होता है क्योंकि द्वितीय सासादन गुणस्थान में ही उनकी व्युच्छित्ति हो जाती है। एवं उवरिं णवपणअणुदिसणुत्तरविमाणजादा जे। ते देवा पुणु सम्मा अविरदठाणुव्व णायव्वा ।।34|| एवं उपरि नवपंचानुदिशानुत्तरविमान जाता ये। ते देवाः पुनः सम्यक्त्वा अविरतस्थानवज्ज्ञातव्याः॥ अर्थ - ऊपर नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानवासी देवों में जो देव होते हैं। उनके आस्रव देवगति में चतुर्थ गुणस्थान के आस्रव के समान जानना चाहिए क्योंकि वहाँ चतुर्थ गुणस्थान मात्र ही पाया जाता है। संदृष्टि नं. 10 भवनत्रिक एवं कल्पवासीस्त्री आस्रव 52 भवनत्रिक एवं कल्पवासी स्त्रियों के 52 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 24 (कषाय 16, नोकषाय 8 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 1. मिथ्यात्व |5 [5 मिथ्यात्व] |52 [5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4,काययोग 3-वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र,और कार्माणकाययोग), कषाय 24 (कषाय 16, नोकपाय8हास्य, रति,अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद,फेद [32] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98