Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 47
________________ गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव | आस्रव अभाव । 2. सासादन | 4 [अनंतानुबंधी |34 [उपर्युक्त 41-7 7 [5 मिथ्यात्व, अनुभय |4 कषाय] |(5 मिथ्यात्व, अनुभय वचनयोग, वचनयोग, औदारिककाययोग)] औदारिककाययोग] संदृष्टि नं. 16 चतुरिन्द्रिय आस्रव 42 चतुरिन्द्रिय के 42 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 10 अविरति (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु इन्द्रिय), योग 4 (अनुभय वचन, औदारिक, औदारिक मिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि दो होते हैं। आस्रव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आसव 1. मिथ्यात्व 7 [5 मिथ्यात्व, 42 [5 मिथ्यात्व, 10 अविरति अनुभयवचनयोग, (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना, औदारिककाययोग] घ्राण, चक्षु इन्द्रिय), योग 4 (अनुभय क्चन, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कपाय 16, नोकषाय 7- हास्य, रति, अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)] 2. सासादन 4 [अनंतानुबंधी 4 कषाय] 35 [उपर्युक्त 42-7 (5 मिथ्यात्व, अनुभयवचनयोग, औदारिककाययोग) 17[5 मिथ्यात्व, अनुभयवचनयोग, औदारिककाययोग] पंचेदियजीवाणं तसजीवाणं च पच्चया सव्वे। पुढ़वीआदिसु पंचसु एइंदिय कहिद अडतीसा ।।38|| पंचेन्द्रियजीवानां त्रसजीवानां च प्रत्ययाः सर्वे। पृथिव्यादिषु पंचसु एकेन्द्रिये कथिता अष्टात्रिंशत् ॥ [38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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