Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 87
________________ संदृष्टि नं. 53 वेदकसम्यक्त्व आस्रव 48 वेदकसम्यक्त्व में 48 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं 12 अविरति, योग 15 ( मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 7 औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण काययोग), अप्रत्याख्यानादि कषाय 12, नोकषाय 9 । गुणस्थान अविरत आदि चार होते हैं । गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 4. अविस्त 5. देशविस्त 9 [ अविरति अप्रत्याख्यान 4 औदारिकमिश्र, वैकियिक, वैकियिकमिश्र और कार्मण काययोग] 15 [गुणस्थानवत्] 16. प्रमत्तसंयम 2 [गुणस्थानवत्] 7. अप्रमत्त संथम Jain Education International आस्रव 46 [12 अविरति, योग 13 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग), अप्रत्याख्यानादि कषाय 12, नोकषाय 9] 37 [गुणस्थानवत् 24 [गुणस्थानवत् 22 [गुणस्थानवत्] For Private & Personal Use Only - आस्रव अभाव 2 [ आहारक और आहारक मिश्र काययोग ] 11 [ उपर्युक्त 2 + 9 (स अविरति अप्रत्याख्यान 4, औदास्किमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग)] 24 [12 अविरति अप्रत्याख्यानादि ४ कषाय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग ] 26 [ उपर्युक्त 24 + 2 (आहारक और आहारकमिश्र काययोग)] [78] www.jainelibrary.org

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