Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur
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हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद) । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि दो होते हैं।
आस्रव अभाव
गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव । 1. मिथ्यात्व 7 [5 मिथ्यात्व, 40 [5 मिथ्यात्व, 8 अविरति
अनुभय वचनयोग, (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना औदारिककाययोग] इन्द्रिय), योग 4 (अनुभय वचन,
औदारिक, औदारिकमिश्र और कर्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकपाय7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा,नपुंसक्वेद
|2. सासादन 4 [अनंतानुबंधी
4 कषाय
|33 [उपर्युक्त 40-7 33 [उपर्युक्त 40-7
7 [5 मिथ्यात्व, 1(5 मिथ्यात्व, अनुभय वचनयोग, अनुभय वचनयोग, औदारिककाययोग)]]
औदारिककाययोग]
संदृष्टि नं. 15
त्रीन्द्रिय आस्रव 41 त्रीन्द्रिय के 41 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 9 अविरति (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना, घ्राण इन्द्रिय), योग 4 (अनुभयवचन, औदारिक,
औदारिक मिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि दो होते हैं।
आस्रव अभाव ।
गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति
आस्रव 1. मिथ्यात्व 7 [5 मिथ्यात्व, 41 [5 मिथ्यात्व, 9 अविरति
अनुभय वचनयोग, (षट्काय एवं स्पर्शन, रसना, औदारिककाययोग] घाण इन्द्रिय), योग 4 (अनुभय
वचन, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोक्षाय 7- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद]
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