Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 80
________________ आस्रव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति - आस्रव 1.मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व 55 [गुणस्थानवत्] 2.सासादन 5 [5 मिथ्यात्व 15 [अनन्तानुबन्धी 4,50[गुणस्थानवत्] वैक्रियिकमिश्रकाययोग 3.मिश्र | 43 [गुणस्थानवत] 4, a. [5 मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी औदारिकमिश्र, वैक्रियिक मिश्र औरफार्मण काययोग 10[5 मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी4, वैक्रियिकमिश्र काययोग 4.अविस्त | 8[अप्रत्याख्यान 4, स |45[गुणस्थानवत्46अविरति,औदास्किमिश्र, वैक्रियिकमिश्रकाययोग] वैक्रियिकऔर कार्मण काययोग - संदृष्टि नं. 47 कापोत-लेश्या आस्रव 55 कापोत-लेश्या में 55 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 13 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण), कषाय 16 , नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव अभाव 1.मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व 55 [गुणस्थानक्त आसव 2.सासादन | 4[गुणस्थानवत] 50[गुणस्थानवत] | 5 [5 मिथ्यात्व 12[कृष्ण-नीललेश्यावत 3.मिश्र 43 [गुणस्थानक्त] 4.अविस्त 46 [गुणस्थानवत 9[5 मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी4] 9[अप्रत्याख्यान4, वसअविरति, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग - [71] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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