Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 78
________________ आस्रव अभाव गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 9.अनिवृत्ति- 1[संज्वलन क्रोध] | 13 [गुणस्थानव 35 [उपर्युक्त 34+ पुद] करणभाग4 9.अनिवृत्ति- | 1 सिंज्वलनमान] करणभाग | 12 [गुणस्थानवत्] 36 [उपर्युक्त 35+ संज्वलन क्रोध 9.अनिवृत्ति- 1 [संज्वलनमाया करणभाग 11 [गुणस्थानक्त 37[उपर्युत 36 + संज्वलन मान - 1[संज्वलनलोभ] | 10[गुणस्थानक्त | 10. सूक्ष्य सम्परय संयंत 38 [उपर्युक्त 37 + संज्वलन माया 11.उपशंत गुणस्थानक्त 39[उपर्युक्त 38 + संज्वलन लोभ मोह 12. क्षीणमोह | 4 गुणस्थानक्त्] । [गुणस्थानवत] 39 [उपर्युक्त सगजोगपचया खलु केवलणाणव्व केवलालोए। किण्हतिए पणवण्णं हारदुर्ग वज्जिऊण हवे।।55।। सप्तयोगप्रत्ययाः खलु केवलज्ञानवत् केवलालोके । कृष्णत्रिके पंचपंचाशत् आहारदिकं वर्जयित्वा भवेत् ॥ अर्थ - केवलदर्शन में केवलज्ञान के समान सात आस्रव जानना चाहिये। कृष्ण, नील, कपोत इन तीन लेश्याओं में आहारकद्विक को छोड़कर पचपन आस्रव होते हैं। किण्हदुसाणे वेगुध्वियमिस्सछिदी हवेइ तेउतिए। मिच्छदुठाणे ओरालियमिस्सो पत्थि अविरदे अस्थि ।।56।। [6] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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