Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 77
________________ •संदृष्टि नं. 44 अवधि दर्शन आस्रव 48 अवधि दर्शन में 48 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - अविरति 12, योग 15, अप्रत्याख्यान आदि 12 कषाय, नोकषाय 9 । गुणस्थान अविरत आदि 9 होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आम्रव आस्रव अभाव 4.अविस्त 9[अप्रत्याख्यान 146 [अविरति 12, योग 13 (मनोयोग4, 2[आहारक, आहारकमिश्र क्रोधआदि4,स क्चनयोग4, काययोग5 काययोग] अविरति, औदारिक औदारिकद्विक, वैक्रियिकद्विक और मिश्र, वैक्रियिकद्विक कार्मण), अप्रत्याख्यान आदि 12 कषाय, और कार्मणकाययोग] नोकषाय] |5.देशविरत | 15 [गुणस्थानवत] 37 [गुणस्थानव 11[अप्रत्याख्यान क्रोध आदि 4, सअविरति, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्विक, आहारकद्रिक और कार्मणकाययोग] 6.प्रात्तविरत | 2 [गुणस्थानक्त 24 [गुणस्थानक्त 24 अविरति 12, अप्रत्याख्यान आदि कषाय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्रिक और कार्मणकाययोग] 7. अप्रमत्त 0 22 [गुणस्थानवत 22 [गुणस्थानवत्] 16 [गुणस्थानवत] 8. अपूकरण | 6 [गुणस्थानक्त] ७.अनिवृत्ति- 1निपुंसकवेद] करणभाग। 9.अनिवृत्ति- | 1 [स्त्रीवेद करणभाग2 | 26[उपर्युत24+2 (आहारकद्धिक)] 26 [उपर्युक्त 32[उपर्युत 26 + हास्य आदि नोक्षाय 33 [उपयुक्त 32+ नपुंसक्वेद 34 [उपयुक्त 33+ स्त्रीवेद] 15 [गुणस्थानव 9.अनिवृत्ति- 1 [पंवेद] करणभाग 14 [गुणस्थानव [68] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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