Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 64
________________ संदृष्टि नं. 31 क्रोध चतुष्क आस्रव 45 अनन्तानुबंधी आदि चारों प्रकार के क्रोधों में 45 आस्रव होते हैं - आस्रव के 57 भेदों में से 4 कषायों की शेष मान आदि 12 कषायें कम करने पर 45 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, 15 योग, 4 प्रकार का क्रोध, नोकषाय 9। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि 9 होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आसव आस्रव अभाव 1.मिथ्यात्व 5[5 मिथ्यात्व 43[5मिथ्यात्व, 12अविरति, योग 132[आहारकऔर आहारकमिश्र (मनोयोग4,वचनयोग4,काययोग 5- काययोग औदारिक, औदारिकमिश्र,वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मण काययोग), 4प्रकार का क्रोध, नोकषाय] 2. सासादन |1[अनंतानुबंधी क्रोध] 38[उपर्युत43-5मिथ्यात्व 17[5 मिथ्यात्व, आहारकद्विक 3.मिश्र 134 उपर्युक्त 38-4 (अनंतानुबंधीक्रोध, | 1115 मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्रऔर क्रोध, औदारिकमिश्र, कार्मण काययोग)] वैक्रियिकमिश्र, आहारकद्विक और कार्मण काययोग] 4.अविस्त [अप्रत्याख्यान 7 [उपयुक्त 34+3 (औदारिकमिश्र, [5 मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी क्रोध, जसअविरति, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग)] क्रोध, आहारकद्रिक औदास्किमिश्र, वैक्रियिकद्विक, कार्मणकाययोग 5.देशविस्त | 12[पृथ्वीकाय आदि 31 [उपर्युत 37-6(अप्रत्याख्यान क्रोध, 14[उपयुत्त8+6 11 अविरति, स अविरति, औदारिकमिश्र, (अप्रत्याख्यान क्रोध, त्रस प्रत्याख्यान क्रोध] वैक्रियिकद्रिक, कार्मण काययोग)] अविरति, औदास्किमिश्र, वैक्रियिकद्विक, कार्मण काययोग)] 6.प्रात्त विस्त | 2[आहारकद्रिका 21 [संज्वलनक्रोध, नोकषाय 9, 24 [5 मिथ्यात्व, अविरति 12, मनोयोग 4, क्चनयोग 4, औदारिक अनंतानुबंधी आदि 3 प्रकार का काययोग, आहारकद्विक] क्रोध, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्विक और कार्मणकाययोग] 7.अप्रमत्त | 19 [उपर्युक्त 21-आहारकद्विक] 26 [उपर्युक्त 24+ विस्त आहारकद्विको [55] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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