Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 61
________________ गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 7.अप्रमत्त विस्त 20 [उपयुक्त 33 [उपर्युत 8. अपूर्वकरण |6 [गुणस्थानक्त] 20 [उपर्युक्त] | 33 [उपर्युक्त 9.अनिकृतिकरण भाग 14[उपर्युक्त 20-हास्य आदि 6नोकषाय 39 [उपर्युत्त 33+ हारय आदि6,नोकषाय 9.अनिवृत्त- 1 [स्त्रीवेद] 14 [उपयुक्त 39 [उपर्युक्त करणभाग2 संदृष्टि नं. 30 नपुंसकवेद आस्रव 53 नपुंसकवेद के 53 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, 13 योग (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, हास्य आदि 6 नोकषाय एवं नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि 9 होते हैं। - - गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 1. मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व | 53 [5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 13 (मनोयोग, वचनयोग 4, काययोग 5औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मण) कषाय 23 (कषाय 16, हास्य, रति, अरति, शोक, भय,जुगुप्सा, नपुंसकवेद] 2. सासादन |5[अनंतानुबंधी | 47 [उपर्युक्त53-6 6 [5 मिथ्यात्व, वैक्रियिक 4 कषाय, औदारिक (5 मिथ्यात्व, वैक्रियिकमिश्रकाययोग] मिश्रकाययोग] मिश्रकाययोग 3.मिश्र 141 [उपयुत47-6 | 12 [5 मिथ्यात्व, (4अनंतानुबंधी, वैत्रियिकमिश्र, 4अनंतानुबंधी, औदास्किमिश्र, कार्मणकाययोग)] वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग] [52] - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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