Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ आस्रव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 6.प्रत्तक्रित | 2 [गुणस्थानवत् | 22 [गुणस्थानवत्24-2 (स्त्रीवेद, नपुंसकवेद)] 33 [5 मिथ्यात्व, अविरति 12, अनंतानुबंधी आदि 12 कषाय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्विक, और कार्मण काययोग] | 35 [उपयुत 33+2 (आहारकद्विक)] 7.अप्रमत्त 20 [गुणस्थानवत्22-2 (स्त्रीवेद, नपुंसकवेद)] 8.अपूर्वकरण 6 [गुणस्थानव] | 35 [उपयुत्त 9.अनिवृत्तिकरणभागत 9.अनिवृत्तिकरणभाग2 ७.अनिवृत्ति- | 1 [वेद] करण भाग /20 [गुणस्थानवत्22-2 (स्त्रीवेद, नपुंसकवेद)] 14 [गुणस्थानक्त् 16-2 (स्त्रीवेद, नपुंसकवेद)] | 14[गुणस्थानक्त् 15-1 (स्त्रीवेद)] | 41[उपर्युक्त 35+हास्य | आदि6 नोक्षाय 41[उपर्युक्त 14 [गुणस्थानव 41 [उपयुक्त मिस्सदुकम्मइयच्छिदी साणे संढ़े ण होइ पुरसिच्छी। हारदुर्ग विदियगुण ओरालियमिस्स वोच्छेदो।।44|| मिश्रद्धिककार्मणच्छित्ति: सासादने, षंढ़े न भवतः पुरुषस्त्रियौ। आहारदिकं दितीयगुणे औदारिकमिश्रस्य व्युच्छेदः ॥ अर्थ - स्त्रीवेद में सासादन गुणस्थान में औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग की व्युच्छित्ति हो जाती है। नपुंसकवेद में पुंवेद, स्त्रीवेद एवं आहारकद्विक नहीं पाये जाते हैं तथा नपुंसकवेद में सासादन गुणस्थान में औदारिक मिश्र काययोग की व्युच्छित्ति हो जाती है एवं सासादन गुणस्थान में वैक्रियिक मिश्र को कम कर चतुर्थ गुणस्थान में जोड़ देना चाहिए। क्योंकि नपुंसक वेद में सासादन गुणस्थान में वैक्रियिकमिश्र काययोग नहीं पाया जाता है। (उपर्युक्त अर्थ गाथा 44 एवं गाथा 45 के दो चरणों से ग्रहण किया गया है) - 1. स्त्रीवेदस्य सासादन गुणस्थाने। [50] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98