Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ हारदुगं वज्जित्ता जोगाणं तेरसाणमेगेगं। जोगं पुणु पक्खित्ता तेदाला इदरयोगूणा ।।3।। आहारदिकं वर्जयित्वा योगनां त्रयोदशानां एकैकं । योगं पुनः प्रक्षिप्य त्रिचत्वारिंशत् इतरयोगोनाः ।। अर्थ - आहारक और आहारकमिश्र काययोग को छोड़कर शेष तेरह योगों में निज एक-एक योग जोड़कर शेष चौदह योगों से रहित (57-14) = 43 बन्ध प्रत्यय होते है, अर्थात् मिथ्यात्व 5, अविरति 12, कषाय 25 और स्वकीय योग = 43) संदृष्टि नं. 21 असत्योभय मनोवचन योग आस्रव 43 असत्योभय मनोवचन योग में 43 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मिथ्यात्व 5, अविरति 12, स्वकीय योग 1, कषाय 16, नोकषाय 9 । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि बारह होते हैं। आस्रव अभाव - - गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 1.मिथ्यात्व मिथ्यात्व5] 43 [मिथ्यात्व 5, अविरति 12, स्वकीय योग 1 कषाय 16, नोकपाय) 2.सासादन 4[अनन्तानुबन्धी 4] | 38 [उपर्युक्त 43 - 5 मिथ्यात्व] 3.मिश्र 34 [उपर्यंत 38 -अनन्तानुबन्धी4] 4.अविस्त 5[अप्रत्याख्यान4, | अ[उपर्युत] सअविरति 5.देशविस्त | 15 [पृथ्वीकाय आदि 29 [उपर्युक्त 4-5 11अविरति, (अप्रत्याख्यान 4, सअविरति)] प्रत्याख्यानकषाय 5 [मिथ्यात्व 5] 9 [मिथ्यात्व 5, अनन्तानुबन्धी4] 9[उपर्युक्त 14[उपर्युत +5 (अप्रत्याख्यान,क्रोधादि 4,सअविरति)] [42] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98