Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 55
________________ वजित्ता पुंवेदे थीसंढ़ इत्थीवेदे हारदु पुंसंढ़ च पुंवेदे स्त्रीषंदाभ्यां वर्जिता शेषप्रत्यया भवन्ति । स्त्रीवेदं आहारद्धिकेन पुंषंदाभ्यां च वर्जिता सर्वे ॥ अर्थ - पुंवेद में स्त्रीवेद और नपुंसकवेद को छोड़कर शेष सभी पचपन आस्रव होते हैं। स्त्रीवेद में आहारकद्विक, पुंवेद और नपुंसकवेद को छोड़कर शेष सभी तिरेपन आस्रव (प्रत्यय) होते हैं । विशेष - कर्मकाण्ड में पुंवेद में सत्तावन, स्त्री तथा नपुंसकवेद में पचपन आस्रव कहे गये हैं, जो कि सही विदित होते हैं । (विशेष देखें कर्मकाण्ड आदिमति माता जी का अनुवाद पृष्ठ 717) औदारिकमिश्रकाययोग में 43 आम्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मिथ्यात्व 5, अविरति 12, औदारिकमिश्रकाययोग, कषाय 16, नोकषाय 9 । गुणस्थान 1, 2, 4, 13 ये चार होते हैं। |गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 1. मिथ्यात्व 5 [ मिथ्यात्व 5 ] . 2. सासादन सेसपच्चया होति । वज्जिदा सव्वे ॥43॥ 4. अविस्त 13. सयोग वेचली संदृष्टि नं. 23 औदारिकमिश्रकाययोग आस्रव 43 6 [ अनन्तानुबन्धी 4, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद ] Jain Education International आसव 43 [ मिथ्यात्व 5, अविरति 12, औदारिकमिश्रकाययोग, कषाय 16, | नोकषाय 9] 38 [ उपर्युक्त 43 - 5 मिथ्यात्व ] 31 [ अप्रत्याख्यानादि 12 | 32 [ उपर्युक्त 38 - 6 (अनन्तानुबन्धी4, कषाय, हास्यादि 6 स्त्रीवेद, नपुंसकवेद) ] नोकषाय, पुंवेद अविरति 12] 1 [औदारिकमिश्रकाययोग] 1 [ औदारिकमिश्रकाययोग] For Private & Personal Use Only आस्रव अभाव 0 5 [ मिथ्यात्व 5 ] 11 [ मिथ्यात्व 5, अनन्तानुबन्धी 4, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद] 42 [उपर्युक्त 11 + अविरतगुण स्थान व्युच्छिन्न 31 आसव ] [46] www.jainelibrary.org

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