Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 2.सासादन |6 [अनंतानुबंधी 47 [उपर्युक्त 52 - 5 मिथ्यात्व] /5 [5 मिथ्यात्व 4कषाय, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मणकाययोग 3.मिश्र 41 [उपर्युक्त 47-6 | 11 [5 मिथ्यात्व, (4अनंतानुबंधी, वैक्रियिकमिश्र और 4 अनंतानुबंधी, कार्मणकाययोग)] औदारिकमिश्र, और कार्मणकाययोग] अविरत 6 [अप्रत्याख्यान 41 [मिथ्यात्व गुणस्थान के 52- 11[5 मिथ्यात्व, | 11(5 मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी 4, 4अन्तानुबंधी, वैक्रियिककाययोग, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मणकाययोग)] वैक्रियिकमिश्र और त्रस अविरति] कर्मणकाययोग क्रोध आदि4, संदृष्टि नं. 11 सौधर्मादि से ग्रैवेयक पर्यन्त आस्रव 51 सौधर्मादि से ग्रैवेयक पर्यन्त 51 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुंवेद) । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आम्रव आस्रव अभाव 5 [5 मिथ्यात्व] 51 [5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, मिथ्यात्व योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग). कषाय 23 (कषाय16,नोक्षाय7हास्य, रति,अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, 2. सासादन 4 [अनंतानुबंधी 14 कषाय] 46 [उपर्युक्त 51-5 मिथ्यात्व]5 [5 मिथ्यात्व] [33] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98