Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 40
________________ संदृष्टि नं.9 लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य आस्रव 42 लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य के 42 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, मन को छोड़कर 11 अविरति, योग 3 (औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद)। गुणस्थान एक मिथ्यात्व मात्र ही होता है। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव 1.मिथ्यात्व 142[5 मिथ्यात्व, 11अविरति, योग 3 (औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसक्वेद)] देवे हारोरोलियंजुगलं संद च णत्थि तत्थेव। देवाणं देवीणं णेवित्थी व पुंवेदो।।32|| देवेषु आहारकौदारिकयुगले षंढ़ च नास्ति तत्रैव । देवानां देवीनां नैव स्त्री नैव पुंवेदः ॥ अर्थ - देवगति में देवों में आहारकद्विक, औदारिकद्विक और नपुंसकवेद नहीं होता है। देवों में स्त्रीवेद तथा देवियों में पुंवेद नहीं होता है। भवणतिकप्पित्त्थीणं असंजदठाणे ण होइ कम्मइयं। वेगुध्वियमिस्सो वि य तेसिं पुणु सासणे छेदो ||33|| भवनत्रिकल्पस्त्रीणां असंयतस्थाने न भवति कार्मणं । वैक्रियिकमिश्रमपि च तयोः पुनः सासादने व्युच्छेदः ॥ 1. आहारकयुगलमौदारिकयुगलं च। 2. देवानां स्त्रीवेदो नास्ति देवीनां च पुंवेदो नास्ति। [31] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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