Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 43
________________ गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आसव | 3. मिश्र 40 [उपर्युक्त 46-6 (4अनंतानुबंधी, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग)] आसव अभाव 11 [5 मिथ्यात्व, 4 अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग] 4. अविरत 18 [अप्रत्याख्यान 142 [12 अविरति, 11 योग (मनोयोग 49 [5 मिथ्यात्व, क्रोध आदि 4, क्चनयोग4, काययोग 3 - वैक्रियिकद्विक, 4 अनंतानुबंधी] वैक्रियिककाययोग, कार्मण), अप्रत्याख्यानादि 12 कषाय, त्रस अविरति, हारयादि6 नोकषाय, पुवेद)] वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मणकाययोग] संदृष्टि नं. 12 नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर आम्रव 42 नव अनुदिश और पाँच अनुत्तरों में 42 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिक मिश्र, और कार्मणकाययोग), कषाय 19 (अप्रत्याख्यान आदि कषाय 12, नोकषाय 7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुंवेद) । गुणस्थान एक मात्र अविरत होता है। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 4.अविस्त 42 [12 अविरति, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 19 (अप्रत्याख्यान आदिक्षाय 12,नोक्षाय 7- हास्य, रति, अरति,शोक,भय, जुगुप्सा,पुद] आस्रव आस्रव अभाव इति गतिमार्गणा समाप्ता। [34] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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