Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 33
________________ आसव अभाव संदृष्टि नं. 4 कर्मभूमिजतिर्यञ्च आस्रव 53 कर्मभूमिजतिर्यञ्च में 53 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - मिथ्यात्व 5, अविरति 12, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - औदारिक, औदारिक मिश्र और कार्मण), कषाय 25 (कषाय 16, नोकषाय 9 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि पाँच होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव 1 मिथ्यात्व | 5 [मिथ्यात्व5] 53 [मिथ्यात्व 5,अविरति 12, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग3-औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण), कषाय 25 (कषाय 16 , नोकषाय 9)] 12. सासादन 4 [अनन्तानुबन्धी - 48 [अविरति 12, योग 11 [मिथ्यात्व 5] क्रोध, मान, माया, (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग लोभ 3- औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण), कषाय 25 (कषाय 16, नोकषाय 9)] 3मिश्र 0 |42 [उपर्युत48-6 | 11 [मिथ्यात्व5, (अनन्तानुषन्धी4, औदास्किमिश्र अनन्तानुबन्धी4, और कार्मणकाययोग)] औदारिकमिश्र, और कार्मणकाययोग 4 अविस्त | 7 [अप्रत्याख्यान4, 44 [दूसरेगुणस्थान के48 - त्रस अविरति, अनन्तानुबन्धी 4] औदारिक मिश्र और कार्मण काययोग 9[अनन्तानुबन्धी4, मिथ्यात्व 5] 5 देशविस्त 15[अविरति 11, 37 [उपर्युत 44-7(अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान 4-क्रोध, 4,सअविरति, औदारिकमिश्र मान, माया, लोभ] और कार्मणकाययोग)] |16[उपर्युत +7 (अप्रत्याख्यान4,स अविरति, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग)] [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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