Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ संदृष्टि नं.7 - कर्मभूमिजमनुष्य आस्रव 55 कर्मभूमिजमनुष्य के 55 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं :- 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 13 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 25 (कषाय 16, नोकषाय 9 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद)। गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चौदह होते हैं। गुणस्थान आम्रव व्युच्छित्ति आस्रव । आस्रव अभाव 1 मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व 53 [5 मिथ्यात्व, 12अविरति, 2[आहारक, आहारकमिश्र योग 11 (मनोयोग4,क्चनयोग4, काययोग] काययोग 3-औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाययोग), कषाय 25 (कषाय 16, नोकषाय 9 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद] 2 सासान 4[अनंतानुबंधी 4 |48 [12 अविरति, योग 11 7[5 मिथ्यात्व,आहारक कषाय] (मनोयोग4,क्चनयोग4, और आहास्वमिश्र काययोग 3-औदारिक, औदारिकमिश्र | काययोग और कार्मण), कपाय 25 (कषाय 16, नोकषाय 9- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद 42 [उपर्युक्त 48 -6 | 13 [5 मिथ्यात्व, (4 अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र 14 अनंतानुबंधी, और कार्मणकाययोग)] औदारिकमिश्रऔर आहारक, आहारकमिश्र, कार्मणकाययो] 4 अविरत |5[अप्रत्याख्यान 144[12 अविरति, योग 11 11[5 मिथ्यात्व, क्रोध आदि 4, (मनोयोग 4, वचनयोग 4, 4 अनंतानुबंधी, [27] - 3.मिश्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98