Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 31
________________ गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 2. सासादन 4 [ अनन्तानुबन्धी - क्रोध, मान, माया, लोभ ] | 3 मिश्र 4. अविस्त ० 8 [ अप्रत्याख्यान - क्रोध, मान, माया, लोभ, त्रस अविरति, वैक्रियिक, वैक्रियिक मिश्र, और कार्मण काययोग] गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 1. मिथ्यात्व 7 [ मिथ्यात्व 5, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग] आस्रव आसव अभाव 44 [ अविरति 12, योग 9 ( मनोयोग | 7 [ मिथ्यात्व 5, 4, वचनयोग 4, काययोग 1वैक्रियिकमिश्र और वैक्रियिक), कषाय 23 ( कषाय 16, कार्मण काययोग] नोकषाय 7- हास्य आदि 6, नपुंसकवेद) ] Jain Education International 40 [ उपर्युक्त 44 - 4 अनन्तानुबन्धी-क्रोध, |मान, माया, लोभ ] 42 [ अविरति 12, योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण काययोग), कषाय 19 (अप्रत्याख्यान आदि 12 कषाय नोकषाय -हास्य आदि 6 एवं नपुंसकवेद)] संदृष्टि नं. 3 द्वितीयादि 6 नरक आस्रव 51 " वैक्रियिक, द्वितीयादि 6 नरकों में 51 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं- मिथ्यात्व 5 अविरति 12, योग 11 ( मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 वैक्रियिकमिश्र और कार्मण), कषाय 23 ( कषाय 16, नोकषाय 7 हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद) । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि चार होते हैं । आस्रव 51 [मिथ्यात्व 5, अविरति 12, योग 11 (मनोयोग 4, क्चनयोग 4, काययोग 3 - वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण), कषाय 23 - हास्य, ( कषाय 16, नोकषाय 7 रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद ) ] 11 [उपर्युक्त 7+ अनन्तानुबन्धी 4-क्रोध, मान, माया, लोभ] For Private & Personal Use Only [9] मिथ्यात्व 5, अनन्तानुबन्धी4 - क्रोध, मान, माया, लोभ ] - - आस्रव अभाव 0 [22] www.jainelibrary.org

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