Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 16
________________ विशेष - जैसे छट्वे गुणस्थान में आहारकद्विक की व्युच्छित्ति होती है इन दोनों का छट्वे गुणस्थान में सद्भाव तथा सातवें गुणस्थान में अभाव पाया जाता है। मिच्छे पणमिच्छत्तं साणे अणचारि मिस्सगे सुण्णं। अयदे विदियकसाया तसवह वेगुव्वजुगलछिदी।।15।। मिथ्यात्वे पंचमिथ्यात्वं, साने अनचतुष्कं मिश्रके, शून्यं । अयते द्वितीयकषायाः प्रसवधवैक्रियिकयुगलच्छित्तिः ।। अर्थ - मिथ्यात्व गुणस्थान में पाँच मिथ्यात्व, सासादन गुणस्थान में अनन्तानुबंधी चतुष्क, मिश्र गुणस्थान में शून्य, चतुर्थ गुण स्थान में अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ, त्रसवध, वैक्रियिक काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग की आस्रव व्युच्छित्ति हो जाती है। अविरयएक्कारह तियचउक्कसाया पमत्तए णत्थि। अत्थि हु आहारदुगं हारदुगं णत्थि सत्तट्टे ||16|| अविरत्यैकादश तृतीयचतुष्कषायाः प्रमत्तके न संति। अस्ति हि आहारदिकं, आहारद्धिकं नास्ति सप्तमे, अष्टमे ॥ अत्र सुखावबोधार्थं केशववर्णिनोक्तं गाथापंचकमुद्धियतेमिच्छे पणमिच्छतं, पढ़मकसायं तु सासणे, मिस्से। सुण्णं, अविरदसम्मे विदियकसायं विगुव्वदुगकम्मं ॥1॥ ओरालमिस्स तसवह णवयं, देसम्मि अविरदेक्कारा। तदियकसायं पण्णर, पमत्तविरदम्मि हारदुग छेदो।।2।। सुण्णं पमादरहिदे, पुव्वे छण्णोकसायवोच्छेदो,। अणियट्टिम्मि य कमसो एक्केकं वेदतियकसायतियं, ||3|| सुहमे सुहमो लोहो, सुण्णं उवसंतगेसु, खीणेसु । अलीयुभयवयणमणचउ, जोगिम्मि य सुणह वोच्छामि ।।4।। सचणुभायं वयणं मणं च ओरालकायजोगं च। ओरालमिस्सकम्मं उवयारेणेव सब्भावो, 15।। [] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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