Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 28
________________ संदृष्टि 1 (स) कषाय क्रोध, कषाय 25 होती हैं जो इस प्रकार हैं - अनन्तानुबंधी - क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान मान, माया, लोभ, संज्वलन - क्रोध, मान, माया, लोभ, नौ नोकषाय- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद । 1 2 3 25 [16 कषाय, 9 नोकषाय ] 25 [16] कषाय, 9 नोकषाय ] 21 [अप्रत्याख्यानादि 12, 9 नोकषाय ] 21 [उपर्युक्त ] 17 [ प्रत्याख्यान 8, 9 नोकषाय] 13 [संज्वलन 4, 9 नोकषाय ] 13 [ उपर्युक्त ] 13 [उपर्युक्त ] 7 [संज्वलन 4 एवं तीन वेद ] 1 [लोभ] इति गुणस्थान- त्रिभङ्गी समाप्ता । केवलणाणेण विजिदचउघाइकम्मे णादसयलत्थे । वीरविणे वंदित्ता जहाकमं मग्गणासवं वोच्छे |24| । विजितचतुर्घातिकर्माणं केवलज्ञानेन ज्ञातसकलार्थं । वीरजिनं वन्दित्वा यथाक्रमं मार्गणायामास्रवान् वक्ष्ये ॥ 4 5 6 7. 8 af 9 - 10 गुणस्थान मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविस्त देशविस्त प्रमत्तविरत अप्रमत्तविस्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसम्प कषाय अर्थ - चार घातियाँ कर्मों का जिन्होंने नाश कर दिया है, केवल ज्ञान के द्वारा जिन्होंने समस्त पदार्थों का जान लिया है, ऐसे वीर जिन को प्रणाम कर, मैं क्रमानुसार मार्गणाओं में आस्रवों का कथन करूंगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only [19] www.jainelibrary.org

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