Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 27
________________ गुणस्थान योग 7.अप्रमत्तविरत 8.अपूर्वकरण | 9 [मनोयोग 4, वचनयोग 4, औदारिक काययोग] |9 [उपर्युत | 9 [उपयुक्त 9.अनिवृत्त 10.सूक्ष्मसाम्पराय [9[उपर्युक्त 11.उपशंतमह 12.क्षीणमह | 9 [उपर्युक्त |9 [उपयुक्त | 7 [सत्य, अनुभय मनोयोग, सत्य, अनुभय वचनयोग, काययोग - 3 औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग] 13.सयोगकेचली 13.अयोगकेवली - - दुसु दुसु पणइगिवीसं सत्तरसं देससंजदे तत्तो। तिसु तेरं णवमे सग सुहमेगं होति हु कसाया ।।23।। व्ये दयोः पंचैकविंशतिः सप्तदश देशसंयते ततः। त्रिषु त्रयोदश नवमे सप्त सूक्ष्मे एकः भवन्ति हि कषायाः॥ अर्थ - दो गुणस्थानों में पच्चीस अर्थात् मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में पच्चीस कषाय, दो गुणस्थानों में इक्कीस अर्थात् मिश्र और अविरत गुणस्थान में इक्कीस कषाय, देशसंयम में सत्तरह, तीन गुणस्थानों तेरह अर्थात् प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरण गुणस्थान में तेरह अनिवृत्तिकरण में सात एवं सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में एक लोभ कषाय होती है। 1. प्रथमद्वितीयगुणस्थाने पंचविंशतिः । 2. तृतीयचतुर्थगुणस्थाने एकविंशति: इत्यर्थः। [18] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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