Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 26
________________ तिसु तेरं दस मिस्से सत्तसु णव छट्टयम्मि एक्कारा। जोगिम्हि सत्तजोगा अजोगिठाणं हवे सुण्णं ।।22।। त्रिषु त्रयोदश दश मिश्रे सप्तसु नव षष्ठे एकादश । योगिनि सप्तयोगा अयोगिस्थानं भवेच्छून्यं ॥ __ अर्थ - तीन गुणस्थानों में तेरह अर्थात् मिथ्यात्व, सासादन और अविरत गुणस्थान में तेरह, मिश्र में दस, सात गुणस्थानों में नौ अर्थात् देशविरत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशान्तमोह तथा क्षीणमोह गुणस्थान में नौ का, प्रमत्तविरत में ग्यारह सयोगकेवली में सात एवं अयोगकेवली गुणस्थान में शून्य इस प्रकार उपर्युक्त गुणस्थानों में योग का सद्भाव होता है। संदृष्टि नं. 1 (ब) योग - योग 15 होते हैं। जो इस प्रकार हैं - मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 7 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण काययोग। गुणस्थान 1.मिथ्यात्व 2.सासादन 3.मिश्र 4.अविस्त 13 [मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मण काययोग] 13 [उपर्युक्त 10[मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 2 -औदारिक और वैक्रियिककाययोग] 13 [मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 5 - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मण काययोग] 9[मनोयोग 4,क्चनयोग 4, औदारिककाययोग] 11 [मनोयोग4, वचनयोग4, काययोग 3-औदारिक, आहारक और आहारकमिश्र काययोग] [17] 5.देशविस्त 6.प्रात्तविस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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