Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 23
________________ गुणस्थान | आस्रव व्युच्छित्ति 9. अनिवृत्ति - 1 [नपुंसकवेद] करण भाग 1 9. अनिवृत्ति- 1 [स्त्रीवेद ] करण भाग 2 9. अनिवृत्ति करण भाग 3 1 [पुंवेद] Jain Education International आस्रव माया, लोभ, 9 नोकषाय- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद)] आस्रव अभाव 16 [9 योग (मनोयोग 4 - सत्य, 41 [12 अविरति, असत्य, उभय, अनुभय, वचनयोग | 5 मिथ्यात्व, औदारिक 4 सत्य, असत्य, उभय, मिश्र, वैक्रियिक, अनुभय, काययोग 1 - औदारिक), कषाय 7- 4 संज्वलन - क्रोध, मान, माया, लोभ, 3 नोकषाय-स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद] 14 [9 योग (मनोयोग 4- सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, वचनयोग 4 सत्य, असत्य, उभय, अनुभय, काययोग 1 - औदारिक), कषाय 5 - 4 संज्वलन - क्रोध, मान, माया, लोभ, 1 नोकषायू पुंवेद] काययोग) 4 अनन्तानुबन्धी, 4 अप्रत्याख्यान, 4 प्रत्याख्यान ] For Private & Personal Use Only वैकियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण काययोग) 4 16 [9 योग (मनोयोग 4 - - सत्य, 42 [ 12 अविरति, असत्य, उभय, अनुभय, वचनयोग | 5 मिथ्यात्व, औदारिक सत्य, असत्य, उभय, मिश्र, वैक्रियिक, अनुभय, काययोग 1 - औदारिक), कषाय वैक्रियिक मिश्र, 6 - 4 संज्वलन - क्रोध, मान, माया, लोभ, 2 नोकषाय - स्त्रीवेद, पुंवेद] 4 अनन्तानुबन्धी, 4 अप्रत्याख्यान, 4 प्रत्याख्यान, हास्य आदि 6 नोकषाय ] आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण काययोग, 4 अनन्तानुबन्धी, 4 अप्रत्याख्यान, 4 प्रत्याख्यान, हास्य आदि 6 नोकषाय, नपुंसकवेद ] 43 [12 अविरति, 5 मिथ्यात्व, औदारिक मिश्र, वैक्रियिकद्विक, आहारकद्विक और कार्मण काययोग, 4 अनन्तानुबन्धी, 4 अप्रत्याख्यान, 4 प्रत्याख्यान, हास्य आदि 6 नोकषाय, नपुंसकवेद, स्त्रीवेद ] [14] www.jainelibrary.org

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