Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak Author(s): Vijaychandra Kevali Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi View full book textPage 8
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Sha Kailassaganser Cyanmandir कोटा बाईपा। इनके कोई सन्तान नहीं थी, माप विशेष धर्मध्यान करने लगे। अनन्तर सं० १९५६ के भादवा बदी ३ को । रात्रि के ३ बजे एक कन्या का जन्म हुआ। माता पिता ने पुत्र सन्मवत् महोत्सव किया। कुटुम्ब में भी संतान का अभाव. पा प्रतः सबही विशेष उत्सव और लालन, पालन करने लगे, म सज्जन बाई रक्खा । محلیل عللصوص जब यह बाई बारह वर्ष की अवस्था को प्राप्त हुई तब पिता ने उत्तम वर दंदते २ इसी नगर के सिंघी गुलाबचन्द जी के सुयोग्य पुत्र गणपतमल जी से विवाह किया। तीसरे वर्ष में ही इस बाई को अशुभ कर्मों ने वैधव्य प्रदान किया, अनन्तर इस बाई ने धर्मशाला में माता के साथ जाना आना प्रारम्भ किया, और गुरुणी जी महाराज की शाज्ञा से फूलश्री जी ने "सको अशर बोध करा कर प्रति क्रमवादि सिखा दिया । नजिकिनकी तीन वर्षों में जब यह मनाम बाई धर्म क्रिया में प्रवीण होगई और सुसराल वालों से प्राजा प्राप्त करली, तब गुरुशी जी ने दीसा देना अङ्गीकार किया। फिर संवत् १६७४ शाषाढ़ वदी ३ गुरुवार को कन्या लग्न में गुरुणी जी महा. राजा ने दीक्षा दी और दौलत श्री जी के नाम से प्रसिद्ध किया। वीर संवत २४५३ भाद्रपद कृष्या ११ आपके चरणों की दासी For Private And Personal use onlyPage Navigation
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