Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 6
________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kailassagaran Gyanmandie पनि संबत् १९४२ माघ सुदी १४ को प्रातः काल हुमा । माता पिता ने पुत्र से भी अधिक उत्सव किया, क्योंकि मापकी कम पत्रिका में दो यह उस थे। सन्म नाम राधा था परन्तु माता प्रेम के साथ फूल कुंवर मे नाम के पुकारती थी। जब कन्या की अवस्था १२ वर्ष की हुई तो माता पिताओं को विवाह की चिन्ता लगी। इसी नगर के प्रतिष्टित धनिक प्रतापमल जी श्रावक धर्मशाला में पाया जाया करते थे, आपको धर्म ध्यान, व्याख्यान श्रवण करने की अत्यन्त रुचि थी। प्रापका पुत्र चौथमल जी भी पितृवत् सर्व गुण सम्पन्न, वशिकविद्या प्रवीण थे। यह देखकर हस्तीमल जी ने इनके पुत्र के साथ शुभ मुहूर्त में अपनी कन्पा फूल कुवर का पाणिग्रहण कर दिया। अनन्तर अशुभ कर्मों के परिणाम से श्राप केवल तीन वर्ष ही सौभाग्यवती रहीं, अन्त में वैधव्यावस्था प्राप्त कर दीक्षा लेने की उत्कंठा बढ़ने लगों, गुरु जी जो मे कई बार प्रार्थना की परन्तु शुभ परिणाम न हुआ और अन्तराय कर्म नहीं टूटे। सात वर्ष के बाद शुभ कर्मों के नदय से और गुरु महाराज की अतुल कृपा से विक्रम संवत् १९६४ मंगमिर बदीनां ५ दिन के ११ बजे शुभ मुहूर्त में बड़ी धूम धामसे इस बाई (फलकुंबर) को दीक्षा दी गई और नाम फलश्री रक्खा गया । द्वितीय शिष्या (मारवाड़ान्तर्गत ) गोड़वाड़ के कुलातरा गांव को पोरवाल जातीय चुचीबाई भी महाराज के दर्शन करने को कई كليل الجليل الكلى For Private And Personal Use Only

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