Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak Author(s): Vijaychandra Kevali Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi View full book textPage 4
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir अनन्तर भावत्री जी के शिष्या हुई, उनमें प्रधान प्रानन्दश्री हुई, तदनन्तर भीमश्री जी धीर चैनली जी ने आपके पास दीक्षा ली फिर आपने फलोदी के कानुगा मुजानमल जी की धर्म पत्री छगनबाई की सुपुत्री हुनासबाई को सं० । ९८४८ मार्गसिर मुदी १० को दीक्षा दी। इस बाई ने सौभाग्य अवस्था में अपने पति की आज लेकर संसार छोड़ना चाहा था आपका विवाह यहां के वेद मुहता मुरलीधर जी के सुपुष गोरू जी के साथ हुआ था। الإلحاحا आपने अपने गुरू के साथ गुजरात, काठियावाड़,मेवाड़, कच्छ, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर, जोधपुर आदि प्रसिद्ध * स्थानों में चातुर्मास करते हुये विहार किया । जिनमें कई श्रावक और श्राविकाओं को प्रतिबीच दिया। और एक बाई को L दीक्षा देकर उत्तमश्री जी नाम रक्खा । जब सम्बत् १९५६ के वर्ष में जोधपुर में चतुर्मास करने की प्रार्थना आई, तब यहां । पधारों और अपने मधुरोपदेश मे धर्मोन्नति की। यहां स्त्रियों के लिये कोई धर्मशाला नहीं थी,किराये के मकानों में साध्वियों का चातुर्मास होता था,प्राविकानों को परतन्त्र मकान में अत्यन्त कष्ट होता था। इस कष्ट को मिटाने के लिये आपने यहां के श्राविक श्राविकानों को धर्मशाला कराने का उपदेश दिया। इस उपदेश का प्रत्यक्ष फल जोधपुर में श्री केशरियानाथ जी के मन्दिर के पास दफतरियों के बांस में अभी मौजूद है, जिममें प्रति वर्ष साध्वियों के निवास से इस जोधपुरस्थ श्राविकाओं त की पूर्ण लाभ पहुंच रहा है। علل المالي For Private And Personal use onlyPage Navigation
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