Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak Author(s): Vijaychandra Kevali Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi View full book textPage 7
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir श्री अष्ट | पूजा अापने यहां कई बाइयों के आग्रह से दसमास फिर निवास किया-जिममें पाली की सरदार बाई और जोधपुर प्रकार की गट्ट्याईको दीक्षा दी, और उनका नाम कासे उत्तमन्त्री जी और गुणश्री जी दिया, इसका विस्तार वर्णन सनके चरित्र , में बताया जायगा। फिर बृद्धावस्था के कारण आपने फलोदी में स्थायी निवास प्रारंभ किया। जब आपने अपनी आयु का अन्त जाना तो जोधपुर से अपनी शिष्या गुणश्री जी को पत्र लिखवा कर फलश्री जी और शकुनश्री जी को अपने । निकट बुला लिया। विक्रम संवत् १९८२ पवित्र तिथि म पसुदी एकादशी को रात्रि को ८ बजे चढ़ते परिणाम से श्री ब्रहन्त भगवान का ध्यान करते २ आपने अपना भौतिक शरीर को त्याग कर देवलोक में गमन किया आपके शान्तस्वभाव और गम्भीरता मादि गुणों की केवल हमही नहीं किन्तु उक्त देशों के समस्त श्रावक श्राविकाएं मुक्तकवठ से प्रशंसा कर रहे हैं। प्रथम शिष्या प्रति दिन धर्मशाला में मध्यान्दिक धर्मोपदेश किया करतो, कई श्राविकाए सुना करती थीं। उनमें एक बाई को * दीक्षा लेने का भाव उत्पन्न हुनासी जोधपुर नगर के कोलरी मुहल्ले में एक धार्मिक श्रावक मिडिया इस्तीमल जी रहते अचे, सापकी धर्म पनी का माम बाजू बाई था । आपके दो संतान थों जिसमें पुत्र का नाम हेमराज जी था। कन्या का जन्म ५३ ॥ " For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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