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तीन
दर्शन भरा हुआ है। आधुनिक विज्ञानवेत्ता उसे (Rationalistic schooly of Philosophy) प्रमाणसिद्ध एवं हेतुवादी दर्शनशास्त्र कहते हैं। विज्ञान की कितनी ही विस्मयकारी शोध-खोजें (Scientific Researches) जो बाहर आती हैं, उनका वर्णन जैनसिद्धांतों में पूर्व से ही लिखा हुआ पाया जाता है—जैसे ध्वनि की गति, शक्ति और आकृति (Sound & its Velocity etc.), ईथर ( Ether ) जैसे सहकारी तत्त्व की मान्यता, उद्योत (light) प्रभा, तमः, छाया आतप आदि के परमाणु, पदार्थ का अंतरपरिणमन (Inter-penetration), वनस्पति की संज्ञाएँ (Instincts & feelings) जल के (Hydrogen and Oxygen) हायड्रोजन और ऑक्सीजन आदि तत्त्व तथा जलबिन्दु के सूक्ष्म जंतु और परमाणु ( Atoms & Molecules ) की मान्यता आदि अनेक. वैज्ञानिक विषयों का विस्तृत वर्णन सैकड़ों वर्षों के प्राचीन जैनशास्त्रों में पाया जाता है । अभी तक विज्ञान की अति सूक्ष्म अन्तिम मान्यता इलेक्ट्रोन
और 'प्रोटोन' (Electrons & Protons) तक गयी है । परन्तु, जैनदर्शन के कार्मिक वर्गणा के परमाणु (Karmic molecules) जिनको अतीन्द्रिय ज्ञानदर्शनग्राह्य माने हैं, उनको तो 'अल्ट्रा-माइक्रो-मोलेक्यूल्म' कहना अत्युक्ति नहीं है, क्योंकि इलेक्ट्रोन-प्रोटोन से कई गुने सूक्ष्म हैं, जो किसी प्रकार के सूक्ष्मदर्शक यंत्र (Microscope) से भी दृष्टिगोचर नहीं हो सकते । इसी प्रकार इस दर्शन का आत्मवाद, तत्त्ववाद, क्रियावाद, तर्कवाद, न्यायवाद आदि सारे विषय इतने गहन और सूक्ष्म हैं कि, विचारशील विद्यार्थी को इसके अध्ययन से सहज ही विश्वास हो जाता है कि, इस दर्शन के निर्यामक महारथी एवं सूत्रधार केवल महामेधावी और प्रज्ञा-प्रौढ़ ही नहीं थे; परन्तु सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे--अन्यथा ऐसी प्ररूपणा असंभव होती । भले ही सामान्य वर्ग के लोग जैन-दर्शन का महत्त्व न भी समझे परन्तु बुद्धिवादी वर्ग (Intellectual class) तो इसकी तरफ बड़ा आकर्षित हुआ है। और, उसकी रूपरेखा ( Outlines ) समझने की
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