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जैन-साधु वस्तुतः प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करते हैं । जैन-साधु पूर्ण रूप से व्रत, नियम और इंद्रिय-संयम का पालन कर विश्व में आत्मसंयम का एक शक्तिशाली तथा उत्तम आदर्श उपस्थित करते हैं।
एक गृहस्थ का जीवन भी जिसने कि जैनत्व (जैन आचार-विचार का पालन करनेवाला) अंगीकार किया है, वह इतना अधिक निर्दोष होता है कि, भारतवर्ष को उस पर अभिमान होना चाहिए । ।
डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण
एम्. ए., पी. एच. डी., कलकत्ता. ग्रंथों तथा सामाजिक व्याख्यानों से यह बात प्रकट होती है कि, जैनधर्म अनादिकालीन है। यह विषय निर्विवाद और मतभेद विहीन है तथा इस विषय में इतिहास के प्रबल प्रमाण भी हैं।
-लोकमान्य बालगंगाधर टिळक ऐतिहासिक संसार में जैन-साहित्य जगत के लिए सबसे अधिक उपयोगी है । वह इतिहास लेखकों तथा पुरातत्व विशारदों के लिए अनुसंधान की विपुल सामग्री अर्पित करता है।
डॉ० सतीशचन्द्र विद्याभूषण
एम. ए., पी. एच. डी., कलकत्ता विश्वशांति-संस्थापक-सभा के प्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करने का अधिकार केवल जैनों को ही है; क्योंकि अहिंसा ही विश्वशांति का साम्राज्य पैदा कर सकती है और जगत को इस अनोखी अहिंसा की भेंट जैनधर्म के निर्यामक तीर्थकर-परमात्माओं ने की है । इसलिए, विश्वशांति की घोषणा प्रभुश्री पार्श्वनाथ और महावीर के अनुयायियों के सिवा और दूसरा कौन कर सकता है।
-डॉक्टर राधाविनोद पाल
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