Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 76
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५६ ) वहाँ मेरा ( पाटन के भव के नाम केवलचंद्र रामचन्द्र के नाम का) खाता चलता था। मैं उस दूकान पर जाँच करनेवाले अफसरों को ले गया। उनके सामने ३०-४० वर्ष पुराने कागज निकलवा कर अपना खाता निकलवाया। पाटन के भव का मेरे पुत्र का पुत्र मुझे देखने के लिए आया । उसे देखते ही मैं बोला-"तुम तो मेरे बच्चे हो । तुम्हारा नाम मणिलाल है।" उसने भी मेरी बात स्वीकार कर ली। सेवन्तीलाल (चाणसमा) [२] छतरपुर के शिक्षा विभाग के निरीक्षक श्री मनोहरलाल मिश्र की पुत्री स्वर्णलता अपने पूर्व जन्म की बातें बताती है। मिश्रजी एक दिन अपनी पुत्री के साथ जबलपुर गये । वहाँ वह किसी ऐसी जगह की तलाश में थे, जहाँ वह पानी पी सकें। इसी बीच स्वर्णलता ने चाय की एक छोटी-सी दूकान दिखा कर कहा-"चलिए पिता जी, यह अपनी ही दूकान है । इसमें चाय-पानी कर लीलिए ।" यह सुनकर श्री मनोहरलाल मिश्र को हुआ कि, इस लड़की को भ्रम हो गया है। यहाँ तो किसी से जान-पहचान भी नहीं है, फिर यहाँ अपना होटल कहाँ से आ गया ?" पर, पिता की चिन्ता किये बिना स्वर्णलता उस छोटे-से होटल में घुस गयी । और, अपने पूर्वजन्म के छोटे भाई हरिप्रसाद को सम्बोधित करके बोली-"हरी ! मुझे पीने के लिए पानी तो देना । बड़ी प्यास लगी है।" अज्ञात लड़की के मुख से अपना नाम सुन कर हरिप्रसाद पाठक चकित रह गया । उसे आश्चर्य में पड़ा देखकर लड़की बोली- "हरी तू मुझे नहीं पहचानता । मैं तुम्हारी बड़ी बहन किशोरी हूँ।" उसकी बात सुन कर हरी अपने पूरे कुटुम्ब को बुला लाया । सन् १९३९ तक उस For Private And Personal Use Only

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