Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठाकरडो था। मेरी वर्तमान माँ उस समय मेरी बहन थी। पाटन में तंबोलीवाड़ा में मेरा घर था। उसमें इमली का पेड़ था। मैंने आत्माराम जी महाराज, कमलसूरि जी महाराज तथा उमेदविजय जी महाराज का दर्शन किया था। उसके बाद के दूसरे भव में में ब्राह्मण हुआ। मेरा आयुष्य २५ वर्ष मात्र रहा । मैंने विवाह नहीं किया। ब्राह्मण वाले भव के सम्बन्ध में मैं केवल इतनी ही बात जानता हूँ । .. मैं इन बातों को कहता तो घर के हर व्यक्ति कहते कि यह क्या है ? पर, वे इस पर कुछ विशेष ध्यान न देते । एक समय मेरी माता पाटन गयी। उस समय मेरी उम्र केवल तीन ही वर्ष की थी । अतः मैं भी माँ के साथ गया। स्टेशन पर उतरा । इस भव में पाटन जाने का यह मेरा पहला ही अवसर था। मैंने माँ से कहा"आप लोग मेरा कहना सच नहीं मानती थीं। पर, आज मैं अपना घर आपको बताऊँगा।" मा ने कहा-"बताओ! मैं भी तुम्हारा घर देखू !” मैं माँ को तंबोलीबाड़े में अपने घर ले गया। घर अच्छी दशा में नहीं था। उसे दिखा कर मैंने कहा--"यह मेरा मकान है।" दो चार पड़ोसियों को बताया। महल्ले के सभी देवमन्दिरों (घर-मन्दिर ) में ले गया। महाराज साहब का फोटो दिखा कर बताया कि, 'यह आत्माराम जी महाराज हैं, 'यह कमलसूरि महाराज हैं', और 'यह उमेदविजयः जी महाराज हैं।' इस पूरी हकीकत को जानकर पाटन में सब लोग नतमस्तक हो गये । हजारों लोग मुझे देखने आते । लगभग २-४ मास ऐसा ही चलता रहा । गायकवाड़-सरकार ने जांच करने के लिए कुछ अफसर पाटन भेजा । मैं भी पाटन बुलाया गया। उन लोगों ने मुझसे कहा-"अन्य कोई तथ्य बताओ।" उस समय पाटन में सुखड़ीवट में डाह्याचंद आलमचंद की पेढ़ी चलती थी। For Private And Personal Use Only

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