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( ६० ) परिवार में जितने भी व्यक्ति थे, सब के नाम उस लड़की ने बताये । छोटी उम्र में उसके भाई जिस नाम से बुलाये जाते, उन नामों को स्वर्णलता ने बताया । उसके बाद उस लड़की के ससुराल पक्ष के लोग बुलाये गये । उसने अपने तीन पुत्र और दो पुत्रियों को पहचान लिया । उसमें एक बच्चे ने अपना नाम गलत बताया तो स्वर्णलता बोली "माता के सामने झूठ बोलते लज्जा नहीं आती ?"
उसके बाद उसके पूर्वजन्म के पति चिन्तामणि पाण्डेय आये। लड़की से पूछा गया कि यह कौन है ? पूछे जाने पर वह १० वर्ष की लड़की शरमा गयी। और, बोली-"यह वही हैं, जिनसे मेरा विवाह हुआ था। पालकी में बैठकर मैं ससुराल गयी थी। तब यह घोड़े पर थे। रास्ते में इनका घोड़ा भड़क गया था और चार आदमियों को दबाने के बाद घोड़े ने इन्हें पटक दिया था। ये बहुत घायल हो गये थे और महीनों चारपाई पर पड़े रहे।" यह सब सुनकर उसके पिता मनोहरलाल मिश्र के साथ उपस्थित सभी चकित रह गये।
उस लड़की की परीक्षा लेने के लिए सागर-विश्वविद्यालय के उप कुलपति श्री द्वारकाप्रसाद मिश्र, मनोविज्ञान के पंडित श्री मोहनलाल पारा और गंगापुर के विख्यात मानसशास्त्री श्री एच्. एन्. बनर्जी आये । उसकी परीक्षा के बाद उन लोगों ने मत व्यक्त किया-"इस लड़की को अपने पूर्वजन्म की बातें याद हैं, इसमें शङ्का नहीं है।"
इन लोगों के समक्ष उस लड़की ने कहा-“१९३९ में मेरी मृत्यु हुई । इस जन्म से पहले मैं सिलहट (आसाम) में पैदा हुई थी। वहाँ मेरे घर के लोग गाने का काम करते थे।" उस लड़की ने असमी भाषा के दो गाने सस्वर गाकर सुनाये। उसने कुछ लोगों के नाम भी
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