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जैन-सिद्धांत असंदिग्धरूप से प्राचीन काल से है; क्योंकि 'अर्हन् इदं दयसे विश्वमयम्' इत्यादि वेद-वचनों से भी इसकी प्राचीनता मालूम पड़ती है।
प्रो० विरूपाक्ष, एम. ए., वेदतीर्थ
वैदिक विद्वान् कन्नड़-भाषा के आद्यकवि जैन ही थे। प्राचीन और उत्कृष्ट साहित्यरचना का श्रेय जैनों को है।
रा. ब. नरसिंहाचार्य आधुनिक ऐतिहासिक शोध से यह प्रकट हुआ है कि, यथार्थ में ब्राह्मण-धर्म के सद्भाव अथवा उसके हिंदूधर्मरूप में परिवर्तन होने के बहुत पहले जैन-धर्म इस देश में विद्यमान था।
न्यायमूर्ति रांगळेकर
बंबई-हाइकोर्ट मोहेंजोदारो, प्राचीन शिलालेख, गुफाएँ तथा अनेक प्राचीन अवशेषों के प्राप्त होने से भी जैन-धर्म की प्राचीनता का ख्याल आता है।
जैन-मत तब प्रचलित हुआ जब कि, सृष्टि की शुरुआत हुई । मैं तो यह मानता हूँ कि, वेदांत-दर्शन से भी जैन-धर्म बहुत प्राचीन है।
स्वामी राममिश्रजी शास्त्री
प्रो० संस्कृत कालेज, बनारस, मेरे इस कथन में थोड़ी भी अतिशयोक्ति नहीं है कि, वेद-रचना के काल के पहले भी जैन-धर्म अवश्य था ।
डा. एस्. राधाकृष्णन
राष्ट्रपति
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