Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगत की दृष्टि में... जैन-धर्म के विशाल संस्कृत-साहित्य को यदि पृथक् कर दिया जाये तो संस्कृत-कविता की क्या दशा होगी ? इस सम्बन्ध में जैसे-जैसे मेरे ज्ञान की वृद्धि होती है, वैसे-वैसे मेरे आनंदयुक्त आश्चर्य में वृद्धि होती है। डॉ. हर्टल (जर्मनी) जैन-दर्शन स्वतंत्र दर्शन है। मैं अपना यह निश्चय प्रकट करता हूँ कि, जैन-धर्म मूल धर्म है । वह सब दर्शनों से बिलकुल भिन्न और स्वतंत्र है। प्राचीन भारतवर्ष के तत्त्वज्ञान और धार्मिक जीवन के अभ्यास के लिए वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। डॉ. हर्मन याकोबी ( जर्मनी) जैन-दर्शन बहुत ही ऊँची कोटि का है । इसके मुख्य तत्त्व विज्ञानशास्त्र के आधार पर रचे गये हैं । जैसे-जैसे पदार्थविज्ञान आगे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे जैन धर्म के सिद्धांतों की भी सिद्धि होती जाती है। डॉ. एल. पी. टेसीटोरी इटालियन विद्वान जैन-धर्म यथार्थ में न तो हिंदूधर्म है और न वैदिकधर्म है।...वह भारतीय जीवन, संस्कृति तथा तत्त्वज्ञान का मुख्य साधन है । जवाहरलाल नेहरू For Private And Personal Use Only

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