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( ५० ) स्थित हैं । उन सात ताराओं की शृंखला घूमती है; इसलिए वह घूमती हुई दीख पड़ती है और ध्रुव घूमता नहीं; इसलिए वह स्थिर दीखता है । यदि पृथ्वी घूमती होती तो अन्य तारों की तरह ध्रुव भी घूमता हुआ दिखाई देता । परन्तु ऐसी बात नहीं है। इसलिए हम युक्ति से भी समझ सकते हैं कि पृथ्वी स्थिर है, वह धूमती नहीं; और यह सिद्धान्त भी अनादिकालीन है कि पृथ्वी स्थिर है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र तथा तारागण चक्कर लगाते रहते हैं । और, उसी प्रकार हम अनुभव से भी जान सकते हैं।
पृथ्वी को भ्रमशील माननेवालों में भी अब मतभेद उत्पन्न होने लगे हैं। उनमें कुछ लोग अब पृथ्वी को स्थिर मानने लग गये हैं । इसलिए, केवल कल्पना करनेवालों पर परिपूर्ण विश्वास नहीं रखा जा सकता । परिपूर्ण विश्वास केवल सिद्धांत पर ही रखा जा सकता है।
सिद्धांत का प्ररूपण सर्वज्ञ परमात्मा ने किया है; इसलिए वह शाश्वत और अविचल है। __ यह सिद्धान्त त्रिकालाबाधित है। इसका किसी भी काल में परिवर्तन नहीं हो सकता । परिवर्तन झूठ का होता है, सत्य का नहीं। सत्य का परिवर्तन होने पर उसकी गणना झूठ में होगी। जैसे दो और दो चार होते हैं, हजारों वर्ष पहले भी ये दो और दो चार ही थे और आगे भी ये दो और दो चार ही रहेंगे। इस प्रकार तीनों काल में दो और दो चार ही रहेंगे। क्योंकि, वह सत्य है। दो और दो को तीन या दो और दो को पाँच कहें तो वह झूठ गिना जायगा। इसी प्रकार सर्वज्ञ द्वारा प्ररूपित सिद्धान्त त्रिकालाबाधित है और सत्य है।
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