Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४९ ) अभी तक पृथ्वी की जितनी खोज हुई है, वह तो समुद्र के एक बिन्दु के समान है। अभी तक तो भारतवर्ष के पूरे छः खण्डों की भी शोध नहीं हुई । इससे भी कितने ही गुने बड़े असंख्य द्वीपों, हजारों देशों और बड़े-बड़े खण्डों का इस पृथ्वी पर अस्तित्व है। परन्तु, इतना विशाल ज्ञान अपूर्ण मनुष्यों को कैसे हो सकता है ? हमारे महापुरुष पूर्ण और पूर्ण ज्ञानी थे; इसलिए उनको कल्पना और शोध-खोज की आवश्यकता नहीं थी ! वे महाज्ञानी अपने पूर्ण ज्ञान द्वारा चराचर विश्व की सब घटनाओं का कथन कर गये हैं। इसीलिए अपूर्ण और अधूरे वैज्ञानिकों की अपेक्षा हमारी अधिक श्रद्धा और विश्वास केवलज्ञानी परमात्मा श्री जिनेश्वर देव के ऊपर है । शोध करनेवाला मनुष्य निश्चयात्मक रूप से ऐसी बात कैसे कह सकता है कि, पृथ्वी गोल है। जिसको पूर्ण ज्ञान नहीं; वह यदि पूर्णता की बातें करता है तो उसकी गिनती पागलों में होती है । ___तब अधूरे और अपूर्ण मनुष्य पर किस प्रकार विश्वास रखा जाये ? न मालूम इस प्रकार के मनुष्य के सिद्धान्त का परिवर्तन कब हो जाए, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । ___ इस तरह से सूर्य-चन्द्र स्थिर हैं और पृथ्वी धूमती है, यह बात भी प्रमाणविहीन है। जरा उन्हें पूछा जाये कि, ध्रुव तारा उत्तर दिशा में वहाँ का वहीं स्थिर क्यों रहता है ? यदि पृथ्वी घूमती है तो ध्रुव का तारा भी हमें घूमता हुआ दिखायी देना चाहिए । परन्तु, ध्रुव तो उत्तर में ही स्थिर दीख पड़ता है; इसलिए ये सब बातें कपोलकल्पित है । ___ कदाचित् कोई यह कहे कि, ध्रुव तारा तो सिर पर स्थिर है, इसलिए पृथ्वी चाहे जैसी घूमती हो फिर भी वह वहाँ का वहीं दीख पड़ता है, यह बात भी ठीक नहीं है। क्योंकि, ध्रुव के आसपास छोटे सप्तर्षि के सात तारे हमें बराबर घूमते हुए दिखायी देते हैं। वे भी ध्रुव के पास ही For Private And Personal Use Only

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