Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४७ ) रखी है, वह भारतवर्ष के लिए कुछ नयी नहीं है। हमारे प्राचीन महापुरुष जैनाचार्य जो कह गये हैं, वहीं मैं कहता हूँ और इसके प्रमाण के रूप में उन्होंने श्री आचारांगसूत्र और जीवाभिगमसूत्र का उदाहरण साक्षीरूप में दिये थे। जलकायिक-जीव, वनस्पतिकायिक-जीव, शब्दशक्ति, रेडियो, एटम बम, फोटोग्राफ-पद्धति आदि अनेक बातें जो पहले शास्त्रों में थीं, उनका ही उन्होंने विज्ञान द्वारा आविष्कार किया है। आजकल का विज्ञान अधूरा है, अपूर्ण है; इसलिए प्रतिदिन नयी-नयी शोधे होती रहती हैं। वैज्ञानिकों को बार-बार अपना सिद्धान्त बदलना पड़ता है। कुछ वर्ष पहले अमेरिका के पास हजारों मोल लम्बा-चौड़ा एक टापू प्रकाश में आया । ये सभी नयी-नयी शोधे ही यह सिद्ध करती हैं कि, वे अभी भी अधूरे और अपूर्ण हैं। ___ अपूर्ण - अधूरे आदमियों पर हम जो पूर्ण विश्वास रहते हैं, वह हमारी कितनी बड़ी विवेकहीनता है। वे केवल कल्पनाओं के आधार पर ही चल रहे हैं। कप्तान स्कोसंबीन ने सूक्ष्मयन्त्र द्वारा पानी के एक बिन्दु में चलने फिरनेवाले ३६४५० जीव सिद्ध कर बताये। जब कि, हमारे ज्ञानी कहते हैं कि, एक बिन्दु में चलने फिरनेवाले जीवों के अतिरिक्त उसमें स्थावर जीव भी असंख्य हैं। पर, वे सब अल्पज्ञानी द्वारा कैसे जाने जा सकते हैं। । आधुनिक डाक्टर भी एक चने जितनी जगह में क्षय के असंख्यतम जीवों का अस्तित्व स्वीकार करते हैं, जबकि सर्वज्ञ का कथन है कि, एक सूई की नोक जितनी जगह में अनन्त जीव निवास कर रहे हैं । उनका ज्ञान कितना अद्भुत् है। किसी यन्त्र या साधन की उन्हें आवश्यकता नहीं थी। सिर्फ केवलज्ञान द्वारा वे सब बतलाते थे। For Private And Personal Use Only

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