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यंत्रवाद ने आज हजारों आदमियों को बेकार बना दिया है। मनुष्य आज दीन, हीन और निर्वीर्य बन गया है, इस परिणाम का कारण आज का यह यंत्रवाद ही है । जैसे-जैसे विज्ञान प्रदत्त साधन बढ़ते गये, वैसे-वैसे दुनिया में दुःख और अशांति बढ़ती ही गयी है। प्राचीन काल में देश कितना सुखी और समृद्ध था ? देश में कैसी शांति थी? आज तो चारों
ओर भय का आतंक छाया हुआ है । विश्व में अशांति फैली हुई है । पर, मनुष्य को अभी यह समझ में नहीं आता।
हमारे ही शास्त्रों द्वारा इन लोगों ने शोध के कार्य को आगे बढ़ाया और इतने बड़े आविष्कार किये हैं; क्योंकि. हमारे पूर्व महापुरुष बड़े ज्ञानी थे।
हजारों वर्ष पहले ऐसी यंत्र-सामग्री नहीं थी, ऐसे आविष्कार के ऐसे साधन नहीं थे फिर भी विज्ञान द्वारा जो-जो बातें सिद्ध होकर प्रकाश में आती हैं, उन सब वस्तुओं को ऋषि-मुनि लोग अपने अप्रतिमज्ञान द्वारा देखकर पहले ही कथन कर गये हैं; क्योंकि वे महापुरुष सात्विक महाज्ञानी थे।
शास्त्रों में जब हम पहले विमानों की बातें सुनते थे तब अनेक लोग बहुत जल्दी बोल उठते थे कि यह सब गप है। पर, जब साक्षात् विमान उड़ने लगे तब उन्हें मालूम हुआ कि, शास्त्रों में ये महापुरुष जो कुछ लिख गये वह सब पूर्ण सत्य था ।
जगदीशचन्द्र वसु ने जब प्रयोग द्वारा यह सिद्ध कर बताया कि, वनस्पति में जीव है, प्राणी के स्वभाव के अनुसार वह सुख-दुःख का अनुभव करती है और उसका संकोच-विस्तार होता रहता है, तब कहीं बाहर के लोग वनस्पति में जीव मानने लगे। परन्तु, हमारे प्राचीन जैन-शास्त्रों में तो हजारों वर्ष पहले से ही यह सब बताया गया है।
जगदीशचन्द्र बसु ने वर्षों पहले जर्मनी में भाषण देते समय बताया था कि, मैंने वनस्पति में जीव की सिद्धि कर सबके सामने जो यह बात
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