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( ५३ ) जैन-धर्म का उद्भव और इतिहास स्मृति-शास्त्र तथा उनकी टीकाओं से बहुत प्राचीन है ! जैन धर्म हिंदू-धर्म से बिलकुल भिन्न और स्वतंत्र है ।
श्री कुमारस्वामी शास्त्री
मद्रास हाइकोर्ट के प्रधान न्यायमूर्ति विश्व के अप्रतिम विद्वान् जार्ज बर्नार्डशा ने एक बार देवदास गाधी से कहा-"जैन-धर्म के सिद्धांत मुझे बहुत प्रिय हैं। मेरी यह इच्छा है कि, मृत्यु के बाद मैं जैन-परिवार में जन्म ग्रहण करूँ।"
जैन-धर्म के सिद्धांतों के प्रभाव के कारण वे निरामिष भोजन करते थे।
जार्ज बर्नार्ड शा जैन धर्म ने संसार को अहिंसा की शिक्षा दी है। किसी दूसरे धर्म ने अहिंसा की मर्यादा यहाँ तक नहीं पहुँचायी। जैन-धर्म अपने अहिंसासिद्धांत के कारण विश्वधर्म होने के लिए पूर्णतया उपयुक्त है।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जैन धर्म में उच्च आचार-विचार और उच्च तपश्चर्या है । जैनधर्म के प्रारंभ को जानना असंभव है।
फरलांग मेजर जनरल
ऋग्वेद में भगवान् ऋषभदेव के सद्भावज्ञापक मन्त्र में बताया गया है।
ऋषभं मासमानानां सपत्नानां विषासहिहन्तारं शत्रणां दधि विराज गोपितं गवाम् १०१-२१-२६
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