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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन-सिद्धांत असंदिग्धरूप से प्राचीन काल से है; क्योंकि 'अर्हन् इदं दयसे विश्वमयम्' इत्यादि वेद-वचनों से भी इसकी प्राचीनता मालूम पड़ती है। प्रो० विरूपाक्ष, एम. ए., वेदतीर्थ वैदिक विद्वान् कन्नड़-भाषा के आद्यकवि जैन ही थे। प्राचीन और उत्कृष्ट साहित्यरचना का श्रेय जैनों को है। रा. ब. नरसिंहाचार्य आधुनिक ऐतिहासिक शोध से यह प्रकट हुआ है कि, यथार्थ में ब्राह्मण-धर्म के सद्भाव अथवा उसके हिंदूधर्मरूप में परिवर्तन होने के बहुत पहले जैन-धर्म इस देश में विद्यमान था। न्यायमूर्ति रांगळेकर बंबई-हाइकोर्ट मोहेंजोदारो, प्राचीन शिलालेख, गुफाएँ तथा अनेक प्राचीन अवशेषों के प्राप्त होने से भी जैन-धर्म की प्राचीनता का ख्याल आता है। जैन-मत तब प्रचलित हुआ जब कि, सृष्टि की शुरुआत हुई । मैं तो यह मानता हूँ कि, वेदांत-दर्शन से भी जैन-धर्म बहुत प्राचीन है। स्वामी राममिश्रजी शास्त्री प्रो० संस्कृत कालेज, बनारस, मेरे इस कथन में थोड़ी भी अतिशयोक्ति नहीं है कि, वेद-रचना के काल के पहले भी जैन-धर्म अवश्य था । डा. एस्. राधाकृष्णन राष्ट्रपति For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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