Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन-तप जैनों की तपश्चर्या विश्व-विख्यात है। जैनों के उपवास बड़े कठिन होते हैं। इनमें रात्रि या दिन के समय फलाहार, माल, मिष्ठान्न, छास या मोसम्बी इत्यादि कोई भी वस्तु नहीं ली जाती । तपश्चर्या इन्द्रियों का दमन करने के लिए की जाती है । जैन लोग अपनी आत्म-शुद्धि के लिए ऐसी उग्र तपश्चर्या प्रसन्नतापूर्वक महीने-महीने तक करते हैं। ऐसी विधिपूर्वक तपश्चर्या करने से शरीर-शुद्धि भी होती है तथा अनेक असाध्य रोग जड़-मूल से नष्ट हो जाते हैं । उपद्रव दूर होते हैं, अशुभ कर्मों ( पाप ) का नाश होता है, अन्तराय-कर्म नष्ट हो जाता है । आत्मा पुण्यशाली, सुखी और समृद्ध बनती है । हजारों की आधाररूप होती है। ऐसी तपश्चर्या करने से हजारों जीवों को रक्षा होती है; इसलिए तप में दया भी समायी हुई है। तप से धर्म बढ़ता है, पाप घटता है। सुख बढ़ता है और दुःख घटता है, समृद्धि बढ़ती है और दरिद्रता नष्ट होती है। आत्मा प्रभावशाली बनती है; इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार ऐसी तपश्चर्या करनी चाहिए। लौकिक पर्यों के समय दूसरे लोग अपनी आत्मा का असली स्वरूप भूलकर ऐश-आराम में तल्लीन रहते हैं, अपनी इच्छानुसार जहाँ-तहाँ विचरण करते हैं, पर जैन-पर्यों को यह महत्ता है कि, उस समय वे इन्द्रियदमन, तप, त्याग और संयमी जीवन बिताने का पाठ सिखाते हैं। जैनों का सभी पर्व साधकों को अपूर्व ज्ञान अर्पित करता है । ** ** For Private And Personal Use Only

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