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( ४३ )
- नरक के चार द्वार हैं।
( १ ) रात्रि - भोजन ( २ ) परस्त्रीगमन ( ३ ) कच्चे बिना सूखे फल का अचार और ( ४ ) अनन्तकायिक कन्द भोजन करना ।
मद्य मांसाशनं रात्रौ
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ये कुर्वन्ति वृथा तेषां
भोजनं कंद भक्षणं ।
तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥
- जो व्यक्ति मद्य, मांस, रात्रि - भोजन और कन्द-भक्षण करता है, उसके लिए तीर्थयात्रा, जप और तप सब व्यर्थ है ।
मारकण्डेय पुराण में मारकण्डेय ऋषि ने कहा है
श्रस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते । श्रन्नं मांस समं प्रोक्तं, मारकण्डेय महर्षिणा ॥
- सूर्यास्त के पश्चात् जल पीये तो वह रुधिर के समान है और अन्न मांस के समान है ।
मृते स्वजन मात्रेऽपि, सूतके जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे, भोजनं किमुक्रियते ॥
- स्वजन की मृत्यु पर जैसे सूतक लगता है, व्यक्ति कुछ खाता नहीं तो फिर दिन के नाथ -सूर्य के अस्त होने पर भोजन कैसे किया जा सकता है।
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