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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३ ) - नरक के चार द्वार हैं। ( १ ) रात्रि - भोजन ( २ ) परस्त्रीगमन ( ३ ) कच्चे बिना सूखे फल का अचार और ( ४ ) अनन्तकायिक कन्द भोजन करना । मद्य मांसाशनं रात्रौ 3 ये कुर्वन्ति वृथा तेषां भोजनं कंद भक्षणं । तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ - जो व्यक्ति मद्य, मांस, रात्रि - भोजन और कन्द-भक्षण करता है, उसके लिए तीर्थयात्रा, जप और तप सब व्यर्थ है । मारकण्डेय पुराण में मारकण्डेय ऋषि ने कहा है श्रस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते । श्रन्नं मांस समं प्रोक्तं, मारकण्डेय महर्षिणा ॥ - सूर्यास्त के पश्चात् जल पीये तो वह रुधिर के समान है और अन्न मांस के समान है । मृते स्वजन मात्रेऽपि, सूतके जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे, भोजनं किमुक्रियते ॥ - स्वजन की मृत्यु पर जैसे सूतक लगता है, व्यक्ति कुछ खाता नहीं तो फिर दिन के नाथ -सूर्य के अस्त होने पर भोजन कैसे किया जा सकता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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