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( २८ ) (७) भोगोपभोगपरिमाण-व्रत ।
भोग करने योग्य पदार्थों का नियम रखना-जैसे कि आज इतनी वस्तुओं से अधिक का उपयोग न करना। उसके लिए चौदह प्रकार के नियम बताये गये हैं। पाप परिणामकारक व्यापार नहीं करना, उनमें भी ऐसे व्यापारों का तो मुख्य रूप से त्याग होना ही चाहिए, जिनमें कि हिंसा परिमाण बढ़ जाता हो।
जीवन पर्यंत ऐसा नियम बना लेना चाहिए, जिससे खाने-पीने, पहनने, ओढ़ने आदि शरीर के उपयोग में आनेवाली तमाम वस्तु ओं का मर्यादा से अधिक उपयोग न हो । ( ८ ) अनर्थदंड-व्रत ___ दुर्ध्यान नहीं करना। खराब ध्यान से आत्मा मृत्यु के बाद दुर्गति में जाती है। किसी को भी पाप का उपदेश न देना, शस्त्रास्त्र का निर्माण नहीं करना । झूठी कथाओं की रचना न करना, देशकथा, स्त्री-कथा, भोजन-सम्बन्धी कथा और राज कथा का त्याग करना पाप का उपदेश न देना, सिनेमा, सर्कस इत्यादि का त्याग करना । व्यर्थ के पापकर्म न करना | एवं हिंसक प्राणी को नहीं पालना | (९) सामायिक-व्रत
चित्त को समाधि में रखने और समता का सच्चा आस्वाद लेने के लिए अमुक समय पर्यंत अर्थात् विधिपूर्वक ४८ मिनट तक समभाव में रहने को सामयिक व्रत कहते हैं । परमात्मा के ध्यान में लीन होना, आत्मविकास में सहायक होनेवाली पुस्तकों का पठन-पाठन करना, व्यापार तथा आरंभसमारंभ का सर्वथा त्यागकर ४८ मिनट तक एकाग्रचित्त से धर्म-ध्यान करना।
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