Book Title: Arhat Dharm Prakash
Author(s): Kirtivijay Gani, Gyanchandra
Publisher: Aatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहस्थ के व्रत जैन-गृहस्थ द्वारा पालन करने योग्य बारह व्रत हैं। उनमें से पहले पाँच को अणुव्रत, ६ से लगाकर ८ तक गुणव्रत और अंतिम चार को शिक्षाव्रत कहते हैं। (१) स्थूल-प्राणातिपातविरमण-व्रत गृहस्थ स्थाबर जीवों की हिंसा का संपूर्ण त्याग कर नहीं सकता। उनके लिए वहाँ तक पहुँचना अशक्य है । इसलिए, गृहस्थ संपूर्ण रूप से दया का पालन नहीं कर सकता; फिर भी उसे निरपराधी हिलने-डुलनेवाले किसी भी त्रस प्राणी को जानबूझकर मारने की बुद्धि से मारना नहीं चाहिए। और, प्रत्येक कार्य को इस प्रकार उपयोगपूर्वक करना चाहिए कि, जिससे स्थावर जीवों की भी हिंसा न हो (स्थावर अर्थात् पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति कायिक जीव)। (२) स्थूल-मृषावादविरमण-व्रत ____ यदि गृहस्थ असत्य भाषण का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता हो तो भी उसे ऐसे मिथ्या वचन का तो अवश्य ही त्याग करना चाहिए, जिससे कि दूसरों को आघात पहुँचता हो-जैसे कि झूठी साक्षी, झूठे दस्तावेज, झुठी सलाह या विश्वासघात अथवा ऐसे अन्य अनर्थकारी झूठ का सर्वथा त्याग होना ही चाहिए। For Private And Personal Use Only

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