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एक मुसाफिर बोला - "यह मूर्ति कितनी सुन्दर है । और, इसकी रुपहली दाल का क्या कहना !"
यह सुनकर दूसरा यात्री बोला -- "यह ढाल रुपहली नहीं, सुनहली है । आप जरा ठीक से देखिए ।"
पहले यात्री ने बड़ी सावधानी से ढाल को पुनः देखा बोला --- "यह बिलकुल रुपहली है । सोने का इसमें लेशमात्र अंश नहीं है ।
दूसरे यात्री का धैर्य टूट गया और बोल पड़ा - "लगता है, तुम अन्धे हो, नहीं तो सुनहली ढाल को रुपहली कहते कैसे ?"
इस प्रकार दोनों में बाद-विवाद चल पड़ा और लड़ाई की नौबत आ पहुँची । इतने में ग्राम का एव सभ्रान्त पुरुष उस ओर आ निकला और विवाद का कारण जानकर बोला - " आप लोग व्यर्थ ही झगड़ रहे हो । यह ढाल रुपहली भी है और सुनहली भी है। एक-दूसरे को मिथ्या सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है । आप लोग एक दूसरे की जगह पर जाकर पुनः ढाल को देखें तब ढाल का सही रंग समझ सकेंगे ।"
दोनों ने उस सभ्रान्त व्यक्ति का कहना मानकर ढाल को स्थान परिवर्तन करके जो देखा तो उन्हें अपनी भूल समझ में आ गयी ।
६ अन्धे और हाथी
एक बार एक स्थान पर ६ अन्धे एकत्र हो गये। उन सभों ने हाथी के सम्बन्ध में सुन रखा था; पर कभी उसका साक्षात्कार उन्हें नहीं हुआ था । अतः वे राजा के महावत के पास गये और हाथी को स्पर्ष करके उसका अनुभव करने के लिए उसकी विनती करने लगे ।
अतः वे स्पर्ष करके हाथो के संबंध पहले के हाथ में हाथी का कान
महावत ने उन्हें अनुमति दे दी । में जानकारी प्राप्त करने में जुट गये। आया । वह बोला - " हाथी तो सूप- सरीखा है ।" दूसरे के हाथ में सूँड़ आया । वह बोला- "भई, मुझे तो हाथी साँबेला सा लगता है ।" तीसरे
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