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हैं ? इत्यादि वस्तुओं के सच्चे स्वरूप को समझानेवाला स्याद्वाद है। अहिंसावाद, अपरिग्रहवाद तथा स्याद्वाद इत्यादि जैनदर्शन के सुदृढ़ स्तंभरूप हैं और इसीलिए जगत में जैन-दर्शन सर्वोपरि कहा जाता है | इन सिद्धांतों के कारण ही उसे विश्वधर्म कहा जा सकता है ।
जैन-दर्शन का अवलोकन करने पर अहिंसा का जो दिग्दर्शन दृष्टिपथ में आता है, वह वस्तुतः मनुष्य को दिङ मूढ बना देता है। जीव किसे कहना ? वह किसमें रहता है ? उसका स्वरूप, भाव दया और द्रव्य दया, हिंसा और अहिंसा का सच्चा पृथक्करण, कर्म दर्शन इत्यादि अपूर्व तत्त्वज्ञान आपको जैन-सिद्धांत में ही प्राप्त होगा।
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