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( ३१ ) विचार इत्यादि अनेक विषयों के हजारों की संख्या में ग्रन्थ वतमानकाल में भी उपलब्ध हैं।
जिन्हें विशेष जिज्ञासा हो उन्हें उन्हीं विषयों के जैन-ग्रन्थों का अभ्यास करना चाहिए। __यदि मध्यस्थ दृष्टिवाला प्राणी सच्चे त्यागी गुरुओं के पास रह सूक्ष्मतापूर्वक ऐसे अपूर्व ग्रन्थों का अवलोकन करता रहे, तो उसे अवश्य दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है।
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