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स्यादवाद
जैन-सिद्धान्त पर स्यावाद की छाप है अर्थात् जैन-दर्शन में हर सिद्धान्त पर स्यावाद की दृष्टि के विचार किया जाता है।
स्यावाद शब्द 'स्यात्' और 'वाद' दो पदों के मिश्रण से बना है । इसमें 'स्यात्' शब्द का अर्थ है 'कथंचित्' अथवा 'किसी अपेक्षा से', यह अर्थ दर्शाता है और 'वाद' सिद्धान्त अथवा पद्धति का द्योतन करता है । इसीलिए 'स्याद्वाद' को 'अपेक्षावाद' भी कहा जाता है।
एक ही वस्तु एक दृष्टि से एक प्रकार की दिखती है; पर वही वस्तु भिन्न अपेक्षा अथवा दृष्टि से भिन्न प्रकार की दिखती है। अतः किसी वस्तु को सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए अनेक अपेक्षाओं अथवा दृष्टियों को ध्यान में रखना आवश्यक है। स्याद्वाद की यह मान्यता होने के फलस्वरूप उसे 'अनेकान्तवाद' भी कहा जाता है।
__ स्याद्वाद, अपेक्षावाद अथवा अनेकान्तवाद को समझने के लिए 'हाल' का अथवा '६ अंधे और हाथी' का दृष्टान्त ठीक-ठीक समझ लेना आवश्यक है।
ढाल की दूसरी ओर एक ग्राम में एक वीर पुरुष की मूर्ति स्थापित की गयी। उसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल थी। ढाल एक ओर रुपहली थी
और दूसरी ओर सुनहली। एक बार दो यात्री दो भिन्न दिशाओं से मूर्ति के निकट आ पहुँचे और उस मूर्ति पर अपना-अपना मत प्रकट करने लगे।
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